मिलिए भारत की पहली महिला फायर फाइटर हर्षिनी कान्हेकर से (India’s First Woman Firefighter Harshini Kanhekar)
पुरुषों के क्षेत्र में क़दम रखकर हर्षिनी ने न स़िर्फ इतिहास रचा है, बल्कि कई लड़कियों की प्रेरणा भी बनी हैं. हर्षिनी कान्हेकर के लिए भारत की पहली महिला फायर फाइटर बनने का सफ़र कितना संघर्ष भरा था? आइए, उन्हीं से जानते हैं.
मैं यूनीफ़ॉर्म पहनना चाहती थी
यूनीफॉर्म पहने ऑफिसर्स को देखकर मैं हमेशा यही सोचती थी कि आगे चलकर मैं भी
यूनीफॉर्म पहनूंगी, चाहे वो यूनीफॉर्म कोई भी क्यूं न हो. एडवेंचरस एक्टिविटीज़ मुझे बहुत पसंद थीं इसलिए पढ़ाई के दौरान मैं एनसीसी की केडेट भी रही. पीसीएम में बीएससी करने के बाद मैं आर्मी, एयरफोर्स, नेवी ज्वाइन करना चाहती थी और इसके लिए तैयारी भी कर रही थी. जब हम एचएसबी एंटरेंस एग्ज़ाम की तैयारी कर रहे थे, तो अपने शहर (नागपुर, हर्षिनी नागपुर की रहने वाली हैं) की 10 बेस्ट चीज़ें बताओ वाले सवाल के जवाब के लिए हम नेशनल फायर सर्विस कॉलेज (एनएफएससी) के बारे में भी रटते रहते थे कि यह एशिया का एकमात्र फायर ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट है और मिनिस्ट्री ऑफ होम अफेयर्स, गवर्नमेंट ऑफ इंडिया के अंतर्गत संचालित किया जाता है.
मेरा फॉर्म अलग रख दिया गया था
उसी दौरान मेरे एक फ्रेंड ने बताया कि एनएफएससी के फॉर्म निकले हैं. तुम यूनीफॉर्म पहनना चाहती हो ना? तो यहां तुम्हारी ख़्वाहिश पूरी हो सकती है. मैंने तुरंत अपना और अपनी एक फ्रेंड का फॉर्म भर दिया. मैं वहां एडमिशन पाने के लिए काफ़ी उत्साहित थी. मेरे पापा की आदत है कि जब भी हमें कहीं एग्ज़ाम देने जाना होता था, तो वो हमें पहले वह कॉलेज या इंस्टिट्यूट दिखाने ले जाते थे. नागपुर
सिविलाइज़्ड एरिया में स्थित वह बहुत बड़ा और ख़ूबसूरत कॉलेज था, लेकिन हम वहां के बारे में कुछ भी नहीं जानते थे. कॉलेज देखते ही पहला ख़्याल यही आया मन में कि काश, इस कॉलेज में मेरा एडमिशन हो जाए.
उन्होंने कहा, “मैडम, ये जेन्ट्स कॉलेज है”
जब हम कॉलेज के अंदर गए, तो सब लोग मुझे अजीब नज़रों से देख रहे थे. कई लोगों ने कहा भी कि मैडम, यह जेन्ट्स कॉलेज है, आप आर्मी वगैरह में ट्राई कर लीजिए, लेकिन मेरा जवाब था कि फॉर्म में तो ऐसा कुछ नहीं लिखा है कि लड़कियां यहां एडमिशन नहीं ले सकतीं. मैंने फॉर्म लिया है, तो मैं उसे जमा ज़रूर करूंगी. वहां मौजूद फैकल्टी मेंबर्स मुझ पर हंस रहे थे और उन्होंने मेरा फॉर्म बाकी लोगों के फॉर्म से अलग रख दिया. उनमें से एक ने यहां तक कह दिया कि मैडम, महिलाएं अभी भी 33% आरक्षण के लिए लड़ रही हैं (यानी अभी दिल्ली दूर है). तब मैंने उन्हें जवाब दिया, सर, मैं 33% में नहीं, 50:50 में विश्वास रखती हूं. फिर मैंने अपना अलग रखा हुआ फॉर्म अपने हाथों से बॉक्स में डाल दिया.
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जेन्ट्स कॉलेज में मैं अकेली लड़की थी
एग्ज़ाम के बाद मेरा सलेक्शन तो हो गया, लेकिन मेरी फ्रेंड का सलेक्शन नहीं हुआ. मेरे लिए ये गर्व की बात भी थी और शॉकिंग न्यूज़ भी कि जेन्ट्स कॉलेज में अकेले मेरा सलेक्शन हुआ है. तब तक पूरे कॉलेज में ये न्यूज़ फैल गई थी कि हमारे कॉलेज में एक लड़की आ रही है. उसके बाद मेडिकल होना था, जिसके लिए सीनियर डॉक्टर्स का बोर्ड आया हुआ था, लेकिन उन्हें लड़कियों के लिए कोई क्राइटेरिया ही पता नहीं था, क्योंकि इससे पहले वहां किसी लड़की का मेडिकल हुआ ही नहीं था. वो मुझसे कहने लगे, बेटा, इतना मुश्किल कोर्स है, क्या तुम यह कर पाओगी? उस दिन से लेकर कोर्स कंप्लीट होने तक हर बार मेरा एक ही जवाब होता, क्यों नहीं? मैं कर सकती हूं. ट्रेनिंग के दौरान भी जब मुझसे कहा जाता कि तुम ये काम कर लोगी, तो मैं कहती, क्यों नहीं? मैं कर सकती हूं. अपने पूरे कोर्स के दौरान मैंने इस वाक्य को हज़ारों बार दोहराया था. ख़ैर, हाइट, वेट, पर्सनैलिटी, कलर ब्लाइंडनेस आदि के बेसिर पर मेरा टेस्ट लिया गया और मैंने वो सारे टेस्ट क्लियर भी कर लिए. कॉलेज में स़िर्फ 30 सीट्स को एडमिशन मिलना था. पर्सनल इंटरव्यू के लिए वहां बड़ी-बड़ी कंपनियों के डायरेक्टर्स आये हुए थे. वो मेरा मेंटल स्टेटस चेक कर रहे थे कि मैं इतना मुश्किल कोर्स कंप्लीट कर सकती हूं या नहीं. मैंने उनके हर सवाल का पूरे आत्मविश्वास के साथ जवाब दिया.
पैरेंट्स को मनाने में वक़्त लगा
आख़िरकार रात साढ़े नौ बजे लिस्ट में मेरा नाम भी आ गया- मिस हर्षिनी कान्हेकर, उस
कॉलेज के इतिहास में पहली बार किसी लड़की का नाम शामिल हुआ था. ये कॉलेज 1956 से है, लेकिन अब तक वहां किसी लड़की ने एडमिशन नहीं लिया था. मुझे अपने पैरेंट्स को इस बात के लिए तैयार करने में थोड़ा वक़्त लगा कि मैं अकेली लड़की जेन्ट्स कॉलेज में पढ़ने जा रही हूं, लेकिन वो ये भी जानते थे कि एक बार यदि मैंने ऐसा करने की ठान ली है, तो मैं ये कर के रहूंगी.
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क़दम-क़दम पर ख़ुद को साबित करना पड़ा
क्लासरूम में क़दम रखते ही मेरा असली चैलेंज शुरू हुआ. हालांकि यह कोर्स मैंने अपने शौक के लिए किया था, लेकिन मेरे हर काम, हर गतिविधि को सारी लड़कियों से जोड़कर देखा जाने लगा था. मैं यदि देर से पहुंचूंगी, तो लड़कियां देर से आती हैं, मैं कोई चीज़ नहीं उठा पाऊंगी, तो लड़कियां कमज़ोर होती हैं… मेरे परफॉर्मेंस पर आने वाले सालों में यहां एडमिशन लेने वाली सारी लड़कियों का भविष्य तय होने वाला था, इसलिए मैं एक भी ग़लती नहीं करना चाहती थी. साढ़े तीन साल के कोर्स में मैंने एक दिन भी छुट्टी नहीं ली, मैं कभी लेट नहीं हुई और मुझे कभी किसी तरह की पनिशमेंट भी नहीं मिली. एनसीसी बैकग्राउंड होने के कारण मेरा परफॉर्मेंस बहुत अच्छा था.
मिल गई मंज़िल मुझे
कई लोगों ने चाहा भी कि मैं कॉलेज छोड़कर चली जाऊं, लेकिन मैंने ठान लिया था कि ये कोर्स तो मैं कर के रहूंगी. ये कोर्स मैंने स़िर्फ अपने लिए नहीं किया, मैं ये इसलिए भी करना चाहती थी कि मेरे बाद किसी और लड़की को इस कॉलेज में एडमिशन लेने के लिए इतना संघर्ष न करना पड़े. मेरे सहपाठी मुझसे यहां तक कहते थे कि कोर्स तो तुम कर रही हो, लेकिन जब तुम नौकरी के लिए अप्लाई करोगी, तो हमेशा ग्राउंड ड्यूटी पर ही रहोगी, क्योंकि तुम लड़की हो. उनकी इस सोच को भी मैंने ग़लत साबित कर दिया. कोर्स कंप्लीट करने के बाद मेरा ऑयल एंड नेचुरल गैस कमिशन (ओएनजीसी) में सलेक्शन हो गया. आज मैं फायर ऑफिसर के तौर पर उन सभी सुविधाओं का लाभ ले रही हूं, जो मेरे पुरुष सहपाठियों को मिल रही हैं. इसके अलावा मैं गिटार और ड्रम बजाती हूं, फोटोग्राफी भी करती हूं, क्योंकि ज़िंदगी रुकने का नाम नहीं.
– कमला बडोनी
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किन-किन बातों का ध्यान रखना ज़रूरी है.1. लक्ष्य निर्धारणः सबसे पहले आप अपना लक्ष्य निर्धारित करें कि आपको क्या बनना है, सफलता आपको किस क्षेत्र में चाहिए और क्या आप उस क्षेत्र में मील का पत्थर साबित हो पाएंगे? हमारे एक परिचित हैं, जिन्होंने पहले इंजीनियरिंग की, कुछ साल जॉब किया और फिर एमबीए किया, उसके बाद बैंक में जॉब कर रहे हैं. उन्होंने अपनी योग्यता का झंडा हर जगह फहराया, पर सवाल ये है कि अगर आपका रुझान उस ओर नहीं है, तो वो दिशा आप न चुनें. दिशा वो चुनें, जिसमें आपका रुझान हो, जिसमें आपकी योग्यता हो, आप निश्चित रूप से उसमें सफलता प्राप्त करेंगे और यकीन मानिए आप भविष्य में अपने काम का आनंद भी ले पाएंगे…
* स्त्री को शक्ति का रूप माना जाता है इसीलिए उसे ये वरदान मिला है कि वो जिस चीज़ के लिए भी तप करेगी, उसे उसका फल अवश्य मिलेगा.
* हमारी पौराणिक कथाओं में सावित्री अपने पति को यमराज से वापस ले आती है यानी स्त्री में इतनी शक्ति होती है कि वो यदि चाहे, तो कुछ भी हासिल कर सकती है. इसीलिए महिलाएं करवा चौथ के व्रत के रूप में अपने पति की लंबी उम्र के लिए एक तरह से तप करती हैं. तप का मतलब होता है किसी चीज़ को त्यागना और किसी एक दिशा में आगे बढ़ना, पहले के ज़माने ऋषि-मुनी इसीलिए तप करते थे और सिद्धि प्राप्त करते थे. महिलाएं इस दिन निर्जल व्रत करती हैं.
* चौथ का चांद हमेशा देर से निकलता है, ये एक तरह से महिलाओं की परिक्षा होती है कि वो अपने पत…
. मुंहासों से तुरंत छुटकारा पाने के लिए उन पर दिन में कई बार नींबू का रस लगाएं. टूथपेस्ट लगाने से भी मुंहासे ठीक हो जाते हैं.
. यदि आप काफ़ी समय से मुंहासों से परेशान हैं तो 2 टीस्पून नींबू के रस में आधा टीस्पून कुटी हुई दालचीनी को अच्छी तरह मिलाकर मुंहासों पर लगाएं. पिंपल्स ख़त्म हो जाएंगे.
. बादाम को रातभर भिगोकर रखें और सुबह बारीक़ पीसकर उसमें थोड़ा-सा गुलाबजल और चंदन पाउडर मिलाकर मुंहासों पर लगाएं. जल्द फ़ायदा होगा.
. पके पपीते के छिलके को प्रभावित जगह पर लगाने से भी मुंहासे दूर होते हैं और चेहरा साफ़ नज़र आता है.ये भी पढ़ेंः 13 आसान घरेलू नुस्ख़े मिनटों में हटाते हैं ब्लैक हेड्स. मुंहासों को जल्द सुखाने के लिए उनपर चंदन व जायफल पाउडर मिलाकर लगाएं. आप चाहें तो इसमें नींबू का रस भी …
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