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प्रोलैक्टिन हॉर्मोन डिसऑर्डर के माताओं में कारण, लक्षण और इलाज़

प्रोलैक्टिन हॉर्मोन डिसऑर्डर के माताओं में कारण, लक्षण और इलाज़


गर्भावस्था के दौरान महिलाए अनेक उलझन से गुज़रती है। हर महिला का शरीर इस तरह बना है की वो अपने बच्चे को स्वस्थ अनेक प्रकार से बना सकती है। लेकिन ये करते समय उन्हें कुछ प्रकार की कठिनाई और दिक्कत का सामना करना पड़ता है। जब भी पिट्यूटरी ग्लैंड में स्राव उत्पन्न होता है तब ही प्रोलैक्टिन हॉर्मोन डिसऑर्डर बनने लगता है। ये हॉर्मोन नयी माँ में दूध को बनाता है। अगर ये हॉर्मोन अविवाहित या बिना गर्भावस्था में हुए महिला को उत्पन्न होता है तो उनके स्तन से डिस्चार्ज (breast discharge) होने लगता है। इस से सिरदर्द भी हो सकता है और साथ ही अन्य शाररीक सम्बंधित समस्या भी उत्पन्न हो सकती है।

प्रोलैक्टिन हॉर्मोन डिसऑर्डर । माताओं में कमी (Prolactin hormone disorder । deficiency in mothers)

प्रोलैक्टिन एक हॉर्मोन है जो ब्रेन में स्तिथ पिट्यूटरी ग्लैंड द्वारा स्रावित किया जाता है। गर्भावस्था दौरान ये दूध को बनाता है। जो महिलाए गर्भवती नहीं होती है उनमे भी कुछ मात्रा में स्रावित होता है। ज्यादा प्रोलैक्टिन के बनने को हाइपरप्रोलैक्टेनिमिया (hyperprolactinemia) कहते है। ये हाइपरप्रोलैक्टेनिमिया उन महिलाओं में हो सकता है जो गर्भवती नहीं है जिस कारण उनके स्तन से डिस्चार्ज होता है, माहवारी अनियमित हो जाता है, ओवुलेशन (ovulation) की कमी हो जाती है और कभी- कभी सिरदर्द और रौशनी से सम्बंधित लक्षण भी उत्पन्न होते है।

प्रोलैक्टिन हॉर्मोन डिसऑर्डर के कारण (Causes for prolactin hormone disorder)

  • अधिक प्रोलैक्टिन मात्रा के कारण पिट्यूटरी ट्यूमर (अडेनोमास), हाइपोथ्य्रोइदिस्म (hypothyroidism) और मेडिकेशन जैसे ट्रैंक्विलाइज़र (tranquilizers), कुछ हाई ब्लड प्रेशर की दवाइयां, एंटी डिप्रेसंट, एंटी नौसीआ ड्रग्स (anti-nausea drugs) और ओरल कोन्त्रसप्तिव्स (oral contraceptives)।
  • रीक्रिएशनल ड्रग्स जैसे मारिजुआना (marijuana) भी प्रोलैक्टिन की मात्रा को बढ़ा सकता है। प्रोलैक्टिन स्राव इन कारणों के कारण भी बढ़ सकता है जैसे स्तन एग्जामिनेशन, व्यायाम, इंटरकोर्स, निप्पल उत्तेजना, स्ट्रेस, निद्रा और कुछ विशेष फ़ूड।
  • तीन में से एक महिला में अधिक प्रोलैक्टिन की समस्या की कोई पहचान योग्य कारण नहीं होते और 30 से 40 प्रतिशत में अधिक प्रोलैक्टिन सौम्य, बिना कैंसर के पिट्यूटरी ट्यूमर के कारण उत्पन्न होते है।
  • हाइपरप्रोलैक्टेनिमिया का निदान ब्लड की मात्रा में प्रोलैक्टिन से ही जांचा जाता है। इसके साथ अन्य हॉर्मोन मात्रा को भी जांचा जाता है जैसे की थाइरोइड हॉर्मोन। ट्यूमर के साइज़ और उपस्थिति के लिए MRI या CT स्कैन को किया जाता है।

प्रोलैक्टिनोमा का निदान और इलाज (Diagnosis and treatment of prolactinoma)

  • प्रोलैक्टिनोमा एक साधारण प्रकार का पिट्यूटरी ट्यूमर है।
  • गर्भावस्था दौरान स्तन में दूध को बनाने का कार्य प्रोलैक्टिन करता है। बच्चे के पैदा होने के बाद, जब तक माँ अपने शिशु को स्तनपान नहीं करा देती उनके शरीर में से प्रोलैक्टिन की मात्रा गिर जाती है। नर्सिंग के दौरान प्रोलैक्टिन की मात्रा बढती है ताकि दूध को नियमित रूप से बनाए रखे।
  • प्रोलैक्टिनोमा एक सौम्य ट्यूमर है जो प्रोलैक्टिन को बनाता है, इस तरह ब्लड में प्रोलैक्टिन की मात्रा बढ़ जाती है (हाइपरप्रोलैक्टिनेमिया)।

लक्षण (Symptoms)

मेन्स्त्रुअल साइकिल का संतुलन एस्ट्रोजन, इस्त्रड़ोल (estradiol) का एक प्रकार, फॉलिकल- स्तिमुलेतिंग हॉर्मोन (follicle-stimulating hormone) (FSH), ल्युतिनाइज़िन्ग हॉर्मोन (luteinizing hormone) (LH) और प्रोजेस्टेरोन (progesterone) सहित अन्य हॉर्मोन के ऊपर निर्भर रहता है।
  • अमेनोर्र्हेअ (Amenorrhea:  अमेनोर्र्हेअ का मतलब पीरियड्स/ माहवारी की अनुपस्थिति। तब आपको पीरियड्स नहीं होता है जब आपके हॉर्मोन के संतुलन में परेशानी होती है।
  • शोर्ट मेन्स्त्रुअल साइकिल (Short menstrual cycles:  मेन्स्त्रुअल साइकिल में लगभग फोल्लिकुलर (follicular) या एग के विकसन के लिए 14 दिन लगते है और ल्युतीअल फेस (luteal phase) या पोस्ट – ओवुलेटरी (post-ovulatory) फेस के लिए 14 दिन लगते है, अगर कोई भी फेस कम हो जाता है तब माहवारी जल्द ही आ जाती है।
  • लॉन्ग मेन्स्त्रुअल साइकिल (Long menstrual cycles: 35 दिनों के बाद माहवारी में होने का कारण पोलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (polycystic ovary syndrome) या PCOS हो सकता है। पुरुष के हॉर्मोन जैसे अन्द्रोजेंस (androgens) की मात्रा बढ़ने के कारण PCOS उत्पन्न होता है।
  • अनओवुल्यएशन (Anovulation:  LH हॉर्मोन की मात्रा कम होने से सिंड्रोम जैसे ल्युतीनाइज़्ड अनरप्चार्ड फॉलिकल (luteinized unruptured follicle) या LUF हो सकता है। जॉर्जिया रिप्रोडक्टिव स्पेशलिस्ट के अनुसार LUF में फॉलिकल के अंदर एग विकसन होते है लेकिन LH इन्हें उतना नहीं बढ़ने देता जिस से एग रिलीज़ हो सके, इस तरह ओवुल्यएशन (lack of ovulation) की कमी (अनओवुल्यएशन) होती है।

महिलाओं में प्रोलेक्टिन हॉर्मोन डिसऑर्डर (Prolactin hormone disorder in women)

महिलाओं में हाइपरप्रोलैक्टिनेमिया के कारण माहवारी / पीरियड्स और बाँझपन में बदलाव आता है।
कुछ महिलाए पूर्ण तरह से पीरियड्स को खो देती है (amenorrhea) और कुछ में पीरियड्स अनियमित ढंग से होता है।
महिलाए जो गर्भवती नहीं है उनके स्तन में दूध बनने लगता है इसे गेलेक्टोर्र्हेअ (galactorrhea) कहते है। कुछ महिलाए तो लीबीदो (libido) की कमी का अनुभव करती है।
मरीज जिन्मे अधिक पिट्यूटरी ट्यूमर (मैक्रोअडेनोमस, 10 mm से भी बड़ा) होता है उनमे अन्य पिट्यूटरी हॉर्मोन की कमी होने लगती है (जिसे हाइपोपिट्यूटरीस्म कहते है)। ये नार्मल ग्लैंड में मौजूद ट्यूमर के कारण होता है। इसलिए ये अनिवार्य है की डॉक्टर अन्य पिट्यूटरी हॉर्मोन की भी जांच करें। मैक्रोअडेनोमस (macroadenomas) अगर ऑप्टिक नस को कॉम्प्रेस करता है तो परिधीय रौशनी (peripheral vision) दूर हो जाती है।
महिलाए जिन्मे हाइपरप्रोलैक्टेनेमिया और अमेनोर्र्हेअ होती है उनमे ऑस्टियोपोरोसिस (osteoporosis) होने का ज्यादा जोखिम बना रहता है। इसलिए ये महत्वपूर्ण है की महिलाए जो अमेनोर्र्हेअ से गुज़र चुकी है वे अपना बोन डेंसिटी का नाप करें ताकि ये पता लग सके की कहीं एस्ट्रोजन की कमी हड्डियों पर तो प्रभाव नहीं डाल रही है। अगर आपका हाइपरप्रोलैक्टिनेमिया का इलाज हो चूका है तो भी ये करें।
हाइपरप्रोलैक्टिनेमिया (Hyperprolactinemia) : हाइपरप्रोलैक्टिनेमिया एक ऐसी परिस्तिथि है जब प्रोलैक्टिन की मात्रा उन महिलाओं में बढ़ने लगती है जो गर्भवती नहीं है। इस से पीरियड्स/ माहवारी अनियमित होते है, स्तन से डिस्चार्ज निकलने लगता है, ओवुलेशन में कमी और कभी सिरदर्द और रौशनी से सम्बंधित डिसऑर्डर उत्पन्न होने लगते है। इन महिलाओं को गोदभराई में भी दिक्कत आ सकती है।

हाइपरप्रोलैक्टिनेमिया के कारण (Causes of hyperprolactinemia)

प्रोलैक्टेनिमिया एक साधारण प्रकार का पिट्यूटरी ट्यूमर है जो गर्भावस्था के दौरान स्तन में दूध को बनाता है। ये एक पिट्यूटरी सेल्स का सौम्य ट्यूमर है, लैक्टेशन दौरान प्रोलैक्टिन की मात्रा दूध को बनाने के लिए बढती है।
  • पिट्यूटरी ट्यूमर द्वारा प्रोलैक्टिन की मात्र के बढ़ने को अडेनोमस (adenomas) कहते है।
  • हाइपोथ्य्रोइदिस्म या अंडरएक्टिव थाइरोइड और दवाइयाँ जैसे ट्रैंक्विलाइज़र और कुछ दवाई के उपयोग से हाई ब्लड प्रेशर, डिप्रेशन, अलसर, हार्टबर्न, गंभीर मेंटल डिसऑर्डर और मेनोपौसल लक्षणों को नियंत्रित रखा जा सकता है।
  • चेस्ट – वाल घाव या नई परिस्तिथि जो चेस्ट वाल को क्षति पहुंचाए जैसे दाद (shingles)
  • अन्य ट्यूमर और रोग जो पिट्यूटरी ग्लैंड को क्षति पहुंचाते है या पिट्यूटरी के पास या उसके ऊपर ट्यूमर का रेडिएशन द्वारा इलाज।
  • जीर्ण लीवर और किडनी के रोग।
  • कभी – कभी कोई कारण का पता भी नहीं चल पाता है।

हाइपरप्रोलैक्टिनेमिया के संकेत और लक्षण (Signs and symptoms of hyperprolactinemia)

  • हाइपरप्रोलैक्टेनिमिया दोनों पुरुष और महिलाओं में उत्पन्न हो सकता है, लेकिन ये बच्चो में नहीं पाया जाता। जो महिलाए इस समस्या से गुज़र रही होती है उन्हें अक्सर ये शिकायत रहती है –
  • योनी में सूखापन (vaginal dryness), इंटरकोर्स के दौरान दर्द।
  • माहवारी / मेन्स्त्रुअल साइकिल में समस्या
  • बिना लैक्टेशन / स्तन्यस्त्रवण के स्तन में दूध बनना।

हाइपरप्रोलैक्टिनेमिया के निदान (Diagnosis of hyperprolactinemia)

अधिक प्रोलैक्टिन को पता लगाने के लिए ब्लड टेस्ट किया जाता है। इस टेस्ट से गर्भावस्था, दवाईय और हाइपोथ्य्रोइदिस्म की भी जांच की जाती है। ब्रेन और पिट्यूटरी का MRI बॉडी के टिश्यू के प्रतिबिंब को दर्शाती है। इस तरह पिट्यूटरी के ट्यूमर और उसके साइज़ के बारे में पता चलता है। ट्यूमर के साइज़ पर निर्भर हो, आँखों की जांच को किया जाता है ताकि ये देख सकें की कहीं परिधीय रौशनी (peripheral vision) तो कम नहीं हो गयी है।

हाइपरप्रोलैक्टिनेमिया का इलाज (Treatment for hyperprolactinemia)

कारण के आधारित पर इलाज को किया जाता है। कुछ लोगो में प्रोलैक्टिन की मात्रा अधिक तो होती है लेकिन उनमे कोई भी संकेत या लक्षण नहीं होते इसलिए उनका इलाज करने की कोई आवश्यकता नहीं पड़ती। इलाज से प्रोलैक्टिन के स्राव को नार्मल मात्रा में लाया जाता है और ट्यूमर के साइज़ को घटाया जाता है और जो रौशनी में असामान्यताएं है उन्हें सही किया जाता है और साथ ही पिट्यूटरी को नार्मल रूप में कार्य पर लगाया जाता है।
  • जिन्हें प्रोलैक्टिनोमा होता है उन पर दवाइयाँ सही रूप से काम करती है। क्योंकि ये प्रोलैक्टिन को बनने से कम करते है।
  • ट्यूमर को निकालने के लिए सर्जरी भी करी जाती है अगर दवाईंयों से कोई असर नहीं हो रहा हैं तो। अगर ट्यूमर के कारण रौशनी पर असर पड़ रहा है तो सर्जरी तब भी की जाती है। प्रोलैक्टिन की मात्रा और ट्यूमर के साइज़ पर सर्जरी का परिणाम निर्भर रहता है।
  • जब दोनों सर्जरी और दवाइयों के कारण ट्यूमर नहीं निकलता तब रेडिएशन का उपयोग किया जाता है जो ट्यूमर को सिकुड़न कर देता है। ट्यूमर की साइज़ और जगह पर रेडिएशन के प्रकार निर्भर होते है।
  • जब हाइपरप्रोलैक्टिनेमिया का कारण नहीं पता चलता तब मरीज को सिंथेटिक थाइरोइड हॉर्मोन दिया जाता है।
शीहान के सिंड्रोम (Sheehan’s syndrome) ये एक परिस्तिथि है जो हमेशा के लिए अनिवार्य पिट्यूटरी हॉर्मोन को कम बनाती है।
शीहान के सिंड्रोम के कारण (Causes of sheehan’s syndrome affects)  महिलाए जिनका अधिक ब्लड घट चूका है या जिनका ब्लड प्रेशर गंभीर रूप से बच्चे के जनम के दौरान या बच्चे के जनम के बाद कम हो चूका है, इस से ब्रेन में स्थित पिट्यूटरी ग्लैंड को आधी क्षति पहुँचती है। शीहान सिंड्रोम (Sheehan’s syndrome) एक गंभीर समस्या है जो हर देश में महिलाओं में उत्पन्न हो रही है।
 शीहान के सिंड्रोम के लक्षण Symptoms of sheehan’s syndrome )  जैसे थकान, जघन और कांख के बालों का गिरना और स्तन में दूध ना बनना। ज्यादातर महिलाओं में लक्षणों का पता नहीं चल पाता है और इनका निदान थाइरोइड के इलाज या एड्रेनल की कमी के कारण होता है। शीहान सिंड्रोम के लक्षण से महिला दूर रह सकती है, ये पिट्यूटरी ग्लैंड पर पहुंचे क्षति पर निर्भर रहता है। कुछ महिलाए सालों तक जीवित रहती है बिना जाने की उनके पिट्यूटरी सही से काम नहीं कर रहे होते है।
शीहान के सिंड्रोम का इलाज (Treatment for sheehan’s syndrome)  ये एक जीवनभर हॉर्मोन को रिप्लेस करने वाली थेरेपी है। बच्चे के जनम के दौरान हेमरेज (hemorrhage) एक दुर्लभ उलझन है। लेकिन शीहान सिंड्रोम भी ज्यादा सामान्य रोग नहीं है। लेबर और डिलीवरी के बाद अगर सही से देखभाल की जाए तो इन दोनों का जोखिम कम हो सकता है।

जवान लड़कियों में प्रोलैक्टिन हार्मोनल की समस्या (Prolactine hormonal issue in young girls)

प्रोलैक्टिन हॉर्मोन डिसऑर्डर से केवल विवाहित महिलाए या गर्भवती महिलाए नहीं गुज़र रही होती है। इस प्रोलैक्टिन डिसऑर्डर से जवान लडकियां भी गुज़रती है। इनका प्रभाव लड़कियों के मेन्स्त्रुअल साइकिल पर पड़ता है। इसके कारण वे बाँझ भी हो सकती है। पीरियाडिक साइकिल में समस्या के कारण माहवारी / पीरियड्स एक या दो महीने तक उत्पन्न नहीं होते है। और कुछ लड़कियों में अनेक मेन्स्त्रुअल साइकिल सामान्य माहवारी के दौरान होता है। जो लड़कियां गर्भवती नहीं है उनके अगर स्तन में दूध बनता है तो ये बहुत ही शर्मिंदगी परिस्तिथि को उत्पन्न करता है।

गर्भावस्था महिला में प्रोलैक्टिन हार्मोन की समस्या (Prolactine hormonal issue in pregnant women)

जब महिला गर्भवती है तब उसमे प्रोलैक्टिन की मात्रा बढ़ जाती है। इस कारण स्तन में दूध बनने लगता है। गर्भवती महिला में प्रोलैक्टिन की मात्रा 10 से 20 गुना बढ़ जाती है। बच्चे के जनम के बाद भी महिला में ये मात्रा और भी बढ़ जाती है। ये बढ़ी हुई मात्रा तब तक रहेगी जब तक आप बच्चे को स्तनपान करवाती है। लेकिन कभी प्रोलैक्टिन की मात्रा बढ़ी रहती है अगर आपने अपने बच्चे को स्तनपान करने से रोक दिया हो तब भी। इस दौरान एक व्यक्ति में विषमता दिखती है। निप्पल में डिस्चार्ज उतना ही आने लगता है। 8 महीने पहले ही स्तनपान को रोकने के बाद भी मेन्स्त्रुअल साइकिल में व्यवधान बना रहता है। इसलिए यह अनिवार्य होगा की आप अपना प्रोलैक्टिन टेस्ट करवाए ताकि आप जान सकें की कहीं प्रोलैक्टिन हॉर्मोन में तो कोई समस्या नहीं है।

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